जेपी के चिकित्सक डॉ. रुद्र कुमार वर्मा ने दुनिया को कहा अलविदा
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डॉ. रुद्र कुमार वर्मा की फाइल फोटो
गया(कुमुद रंजन)। जेपी के चिकित्सक और गया के हरदिल अजीज डॉ. रुद्र कुमार वर्मा, जो कल तक दूसरों को जिंदगी देते थे, आज वो ही इस दुनिया को अलविदा कर गए। अपने जीवन को आम जनता के लिए पूरी तरह सौंप देने वाले डॉ.वर्मा ने गया के लिए देश-दुनिया के सारे न्योते को ठुकरा दिया था।
16 अप्रैल 1933 को बेतिया में जन्मे, आगरा मेडिकल कॉलेज से 1950 बैच के एमबीबीएस 1957 बैच के एमएस रहे 1960 में इंग्लैंड चले गये जहां उन्होंने 1963 में एफआरसीएस पूरी की। डॉ रूद्र कुमार वर्मा ख्यातिप्राप्त यूरो सर्जन के साथ पूर्वी भारत के पहले किडनी डायलिसिस मशीन लाने और डायलिसिस करने वाले पहले यूरोलोजिस्ट हैं। उनकी ख्याति ऐसी थी कि किडनी से संबंधित बीमारियों के लिए पटना बुलाए जाते थे। वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निजी चिकित्सक भी रहें हैं। जब भी जेपी मगध क्षेत्र मे आते, उनकी चिकित्सा की जिम्मेवारी डा वर्मा पर रहती थी। डा वर्मा गया में एक अक्टूबर 1968 को सदर अस्पताल, जो पिलग्रिम अस्पताल के नाम से जाना जाता था, में सर्जन के रूप में काम शुरू किया।
वे गया के पहले एफआरसीएस (फेलोशीप ऑफ द रॉयल कॅालेज ऑफ सर्जन) सर्जन थे। उन्होंने केंद्र सरकार की केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा के तहत पूल मेडिकल ऑफिसर पद पर योगदान दिया था। यह पद व स्कीम केंद्र सरकार ने विदेश में रह रहे भारतीय चिकित्सकों को देश में अच्छी नौकरी व सेवा का मौका देने को शुरू की थी। डॉ वर्मा इसी स्कीम के तहत इंगलैंड से वापस लौटे और गया में सेवा शुरू की। डॉ रूद्र कुमार वर्मा का जन्म 16 अप्रैल 1933 बेतिया राज अस्पताल बेतिया में पटना निवासी और राजापुर- मैनपुरा के जमींदार बाबू हरख लाल के परपोते और बखरा मुजफ्फरपुर के जमींदार बाबू विश्शेवर नारायण के नाती के रूप हुआ। डॉ वर्मा की माता उमा कुमारी और पिता किशोरी शरण वर्मा हैं। उनके पिता डा किशोरी शरण वर्मा पटना विवि के फिलासफी के टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट थे और पहले आगरा व 1952 में गया कॉलेज के प्रिंसिपल भी बने।
गया में शुरू की पेट की सर्जरी
एक दौर था जब गया के मरीज पेट के ऑपरेशन के लिए पटना रेफर हुआ करते थे। लेकिन डॉ. वर्मा के ने उस सारे कॉन्सेप्ट ही बदल दिया। उस समय सदर अस्पताल में पेट का आपरेशन नहीं हुआ करता था। अस्पताल में सेक्शन मशीन और रेस्पिरेटरी तो था परन्तु खराब पड़ा था। डॉ. वर्मा ने खुद उसे दुरुस्त किया और पेट का ऑपरेशन शुरू हुआ। आज भी वे 52 साल पुराने अपने वर्मा नर्सिंग होम में मरीज देखते हैं। वर्मा नर्सिंग होम को देश का पहला पूरी तरह से सोलर ऐनर्जी से चलित नर्सिंग होम की मान्यता प्राप्त है।
1959 में किया एमएस
डॉ. वर्मा की पढ़ाई आगरा स्कूल और बलवंत राजपूत कॉलेज में हुई। 1950 में आगरा मेडिकल कालेज से एमबीबीएस में दाखिला, 1955 में एमबीबीएस पूरा व 1959 में एमएस पूरा किया। इसके बाद इंग्लैंड चले गए, जहां 1963 में लंदन से एफआरसीएस पूरा कर ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस में बतौर न्यूरो सर्जन, यूरो सर्जन, कार्डियोथोरेसिक सर्जन और जनरल सर्जन के रूप मे काम किया।
बेटा-बेटी भी डॉक्टर
डॉ वर्मा के दो बेटे डा संजय वर्मा और डा रत्नेश वर्मा दोनों सर्जन है और दोनों पिता के नर्सिंग होम मे काम करते हैं। दो बेटियां डा० सिंधुजा पति डा अनुपम के साथ इंग्लैंड के नेशनल हेल्थ सर्विस ग्लासगो में है और दूसरी बेटी डा मणीमंजरी कैलिफोर्निया मे डेंटल सर्जन है। डा वर्मा के अनुज डा० उमेश कुमार वर्मा और उनकी पत्नी डा सुषमा वर्मा बिहार स्वास्थ्य सेवा से जुड़े हैं।
कई राज्यों का ठुकराया न्योता
इस बीच उन्हें इलाहाबाद मेडिकल कालेज अस्पताल , शिमला मेडिकल कालेज अस्पताल एवं असम के आयल रिफाइनरी से सर्जन के रूप में ज्वायन करने का बुलाया आया, लेकिन तबतक गया में ही रहने का निश्चय कर चुके थे व बाद में शहर का वर्मा नर्सिंग होम बनाया। डॉ० वर्मा ने गया मे नियोनेटल सर्जरी , पिडियेट्रिक सर्जरी, क्लेफ्ट लिप, क्लेफ्ट पलाट सर्जरी की शुरुआत की। गया के सबसे पहले एफआरसीएस सर्जन और नर्सिंग होम की शुरूआत करने वाले मशहुर सर्जन डा० आर के वर्मा अब इस दुनिया मे नहीं । डॉ.वर्मा अपने पीछे अपनी पत्नी मीरा वर्मा उनके दोनों डॉक्टर पुत्र संजय कुमार वर्मा और रत्नेश कुमार वर्मा बड़ी पुत्रवधू डा० लीना वर्मा पौत्र वकील अमन वर्मा छोड़ गए हैं।