एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से होता है बहरापन, वैज्ञानिकों ने खोजा इससे बचने के उपाय
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हाइलाइट्स
एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के कारण कुछ लोगों में कान के सेल्स मर जाते हैं
एंटीबायोटिक एमिनोग्लायकोसाइड RIPOR2 नाम के प्रोटीन को बांध देता है
How to prevent hear loss: हर इंसान को अपने जीवन में कभी न कभी इंफेक्शन का सामना करना ही पड़ता है. ऐसे में एंटीबायोटिक लेना हमारे लिए लाजिमी हो जाता है. लेकिन एंटीबायोटिक का ज्यादा इस्तेमाल हम सबके लिए नुकसानदेह है. एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के कारण कुछ लोगों में कान के सेल्स मर जाते हैं जिसके कारण बहरेपन का भी शिकार होना पड़ता है. दरअसल, एंटीबायोटिक एमिनोग्लायकोसाइड के कारण बहरेपन की बीमारी होती है. इससे सुनने की क्षमता पूरी तरह खत्म हो सकती है. अब तक यह पता नहीं था आखिर क्यों एमिनोग्याकोसाइड के कारण कानों के सेल्स मर जाते हैं. अब वैज्ञानिकों ने इसका पता लगा लिया है. इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि एंटीबायोटिक के प्रभाव से कान में सुनने के लिए जिम्मेदार कोशिकाओं में ऑटोफेजी मैकेनिज्म की घटना होती है जिससे कारण सुनने वाले सेल्स पूरी तरह मर जाते हैं और अंततः स्थायी रूप से इंसान की सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है.
सुनने की क्षमता खो चुके लोगों का हो सकेगा इलाज
एचटी की खबर के मुताबिक यह अध्ययन डेवलपमेंट सेल जर्नल में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं ने बताया कि किस तरह उन्होंने ऑटोफेजी मैकेनिज्म का पता लगाया जो एमिनोग्लायकोसाइडस के कारण होता है. एमिनोग्लायकोसाइडस एंटीबायोटिक फैमिली की एक दवा है. शोधकर्ताओं ने इसके लिए एक लैब मॉडल विकसित किया. इस मॉडल पर प्रयोग के दौरान एमिनोग्लायकोसाइड के प्रभाव के कारण होने वाले बहरेपन को रोका गया. प्रमुख शोधकर्ता नेक सर्जन प्रोफेसर बो झाऊ ने बताया कि इस खोज के बाद एमिनोग्लायकोसाइड के कारण सुनने की क्षमता खो चुके हजारों लोगों का इलाज संभव हो सकेगा. उन्होंने बताया कि हीयरिंग लॉस का सबसे प्रमुख कारण ऑटोटॉक्सोसिटी है जो दवाई के कारण होती है.
सुनने की क्षमता खत्म करने के लिए एक प्रोटीन जिम्मेदार
शोधकर्ताओं ने बताया कि करीब एक सदी से गंभीर इंफेक्शन का इलाज एमिनोग्लायकोसाइड एंटीबायोटिक से किया जाता है. यह दवाई सस्ती होती है जिसके कारण विकासशील देशों में इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है. लेकिन करीब 20 से 40 प्रतिशत मरीजों में इस दवाई के कारण कानों में सुनने वाली कोशिकाएं मर जाती है. इस वजह से कभी-कभी सुनने की क्षमता पूरी तरह खत्म हो जाती है. शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि इसके लिए ऑटोफेजी मैकेनिजज्म जिम्मेदार है. दरअसल, इस मैकेनिज्म में एमिनोग्लायकोसाइड RIPOR2 नाम के प्रोटीन को बांध देता है. यह प्रोटीन सुनने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. शोधकर्ताओं ने इसके लिए चूहों का दो मॉडल बनाया और इसे साामान्य तरीके से विकसित किया. इसके बाद इसमें RIPOR2 नाम के प्रोटीन को तेजी के साथ कम कर दिया. अब जब इसमें इंफेक्शन हुआ तो एमिनोग्लायकोसाइड की खुराक दी गई. इसके बाद देखा गया कि चूहों में न तो कान के सेल्स की क्षति हुई और न ही सुनने की क्षमता खत्म हुई.
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Tags: Health, Health tips, Lifestyle
FIRST PUBLISHED : September 28, 2022, 16:24 IST
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