जन्मजात भी हो सकती है कोलेस्ट्रोल बढ़ने की बीमारी, इन लक्षणों से पहचानें
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हाइलाइट्स
पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के लक्षण 20 साल से कम उम्र से ही दिखाई देने लगते हैं
आंखों में पुतली के चारों ओर एक सफेद या भूरे रंग का छल्ला बन जाता है
Cholesterol level: शरीर में कोलेस्ट्रोल का होना बहुत जरूरी है. कोलेस्ट्रोल शरीर में कोशिकाओं के निर्माण सहित कई प्रक्रियाओं में भाग लेता है. कोलेस्ट्रोल के कारण ही शरीर में हार्मोन का निर्माण होता है. लेकिन इसकी ज्यादा मात्रा शरीर के लिए बहुत नुकसानदेह है. दरअसल, कोलेस्ट्रोल चिपचिपा पदार्थ के रूप में खून की धमनियों में जमा होने लगता है जिससे हार्ट पर प्रेशर बढ़ता है और इसके कारण दिल से संबंधित कई बीमारियां हो जाती हैं. कोलेस्ट्रोल बढ़ने के लिए आमतौर पर खान-पान को जिम्मेदार माना जाता है लेकिन कभी-कभी यह जन्मजात भी हो सकता है. यदि माता-पिता के जीन से बच्चों में यह चला जाए तो बच्चों में शुरुआत से ही कोलेस्ट्रोल बढ़ने लगता है. इस बीमारी को फेमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया(Familial hypercholesterolemia) कहते हैं. जिस व्यक्ति में हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया होता है उसमें शुरुआत में ही हार्ट अटैक का खतरा रहता है.
हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के कारण
मायो क्लिनिक के मुताबिक पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया जीन में परिवर्तन के कारण होता है जो या तो माता या पिता या माता-पिता दोनों के जीन के बच्चे में जाने से होता है. इस स्थिति में जन्म के साथ ही यह बीमारी लग जाती है. इससे कोलेस्ट्रॉल धमनियों में जमा हो सकता है और हृदय रोग का कारण बन सकता है.
हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के लक्षण
हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के कारण शुरुआती उम्र में ही खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ने लगती है. इस कारण धमनियां पतली और सख्त होने लगती है. ज्यादा कोलेस्ट्रोल जमा होने के कारण कभी-कभी यह स्किन और आंखों के नीचे जमा होने लगता है. इसके अलावा हाथ और पैर की नसें मोटी और सख्त होने लगती है. वहां कोलेस्ट्रोल जमा होने लगता है. जब कोलेस्ट्रोल की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है तब आंखों में पुतली के चारों ओर एक सफेद या भूरे रंग का छल्ला बन जाता है जो आमतौर पर वृद्ध लोगों में दिखाई देता है. इससे कॉर्निया की गंभीर बीमारी हो सकती है.
इसका इलाज क्या है
पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के लक्षण 20 साल से कम उम्र से ही दिखाई देने लगते हैं. अगर माता-पिता को यह बीमारी है तो 10-12 साल से ही बच्चों को डॉक्टर से दिखाना चाहिए. डॉक्टर स्टैटिन, एजिटीमिबे जैसी दवाइयों से इसका इलाज करते हैं. इसके अलावा इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को वजन पर लगाम लगाना होगा. प्लांट बेस्ड फूड, फल और हरी पत्तीदार सब्जियां इस बीमारी के लिए फायदेमंद है. सैचुरेटेड और ट्रांस फैट से दूरी इस बीमारी की गंभीरता से बचा सकती है.
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Tags: Health, Health tips, Lifestyle
FIRST PUBLISHED : September 29, 2022, 06:30 IST
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