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Budget 2021 finance ministry pay attention to women health and safety for economic growth

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साल 2020 पूरी दुनिया के लिए बहुत सी परेशानियां और चुनौतियां लेकर आया। कोरोना वायरस महामारी ने दुनियाभर की विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं विकास के पैमाने और परिभाषों को एक बार फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया। बीते वक्त में सार्वजनिक स्वास्थ को इतनी ज्यादा प्राथमिकता शायद ही कभी दी गई थी। कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई। भारत ने इस महामारी से निपटने के लिए तमाम कदम उठाए हैं, लेकिन जरूरी ये है कि लंबे समय में भारत को क्या बदलाव करने होंगे। 1 फरवरी 2021 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस साल का बजट पेश करेंगी। पिछले 2 सालों से सुस्त चल रही भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना के कारण आधिकारिक रुप से मंदी में आ गई। इस साल का बजट इन सब कारणों की वजह से और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

गौरतलब है कि भारत की स्थिति उसके पड़ोसी देशोंं से भी खराब हो सकती है। आईएमएफ के अनुसार 2021 में बांग्लादेश की वास्तविक प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से आगे निकल जाएगी। भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना बहुत जरूरी है। महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए लंबे समय के लिए कुछ बुनियादी परिवर्तन करने बहुत जरूरी हैं। आगामी बजट में सरकार महिलाओं के लिए इस दृष्टि से निम्नलिखित सुधारों को ला सकती है।

महिला स्वास्थ्य और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का बढ़ाना होगा बजट

कोरोना वायरस महामारी ने हमें बताया है कि बेहतर और सभी के वहन करने योग्य स्वास्थ्य सुविधाओं का होना कितना जरूरी है। यदि देश की आबादी स्वस्थ है तो देश की उत्पादन क्षमता अपने आप बढ़ जाएगी। महिला स्वास्थ्य में बजट के खर्च को बढ़ाने से एक स्वस्थ जनसंख्या विकसित होगी जिसकी उत्पादन क्षमता भी अधिक होगी। इसका सीधा संबंध लंबे समय की उत्पादकता से है। महिलाओं को परिवार नियोजन, गर्भधारण के पहले, उसके दौरान और बाद में बेहतर सुविधाएं देने से लंबे में आने वाली कई पीढ़ियों को इसके सकारात्मक फायदे मिलेंगे। भारत में स्वास्थ्य पर बजट का सिर्फ 1.29 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है। इस क्षेत्र में बजट आवंटन को बढ़ाने की जरूरत है। अस्पतालों के बेहतर विनिर्माण, चिकित्सकों को समय पर वेतन, और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मिलने वाली सुविधाओं साथ ही इन केंद्रों तक लोगों की पहुंच को सुलभ बनाने की जरूरत है। 

बढ़ाना होगी श्रम में महिलाओं की भागीदारी

शहरी क्षेत्रों में 20 साल से अधिक उम्र वाली महिलाओं की श्रम क्षेत्र में भागीदारी बहुत तेजी से घटती है। मातृत्व और पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते ये महिलाएं आय से जुड़ी गतिविधियों से पहले ही बाहर आ जाती हैं। सरकार द्वारा दिए जाने वाले मातृत्व अवकाश का फायदा सिर्फ उन्हीं महिलाओं को मिलता है जो संगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं। इसी तरह मनरेगा के अंतर्गत कार्य करने वाली महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर बच्चे की देखभाल संबंधित सुविधाओं का प्रावधान तो है लेकिन वास्तव में  जमीनी स्तर पर यह कहीं भी लागू नहीं है। साथ ही यह बच्चों के स्वास्थ पर भी बुरा असर डालता है। प्राइवेट क्षेत्रों में भी महिलाओं की स्थिति ऐसी ही है। कई कंपनियां तो इसी कारण से महिलाओं को काम पर रखना नहीं चाहतीं। वैतनिक मातृत्व अवकाश ना मिलने के कारण बहुत सी महिलाएं श्रम क्षेत्र से बाहर हो जाती हैं। इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। यदि केंद्र सरकार कोई अभिवावक अवकाश नीति लाती है तो इसकी वजह से बहुत सी प्रतिभावान महिलाएं श्रम के क्षेत्र में बनी रहेंगी और मां बनने के लिए उन्हें अपनी नौकरी नहीं छोड़नी पड़ेगी। साथ ही पुरुषों को भी संतान के पालन पोषण के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने का मौका मिलेगा।

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सशक्त महिला सुरक्षा से बनेगी समृद्ध अर्थव्यवस्था

भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या किसी से छिपी नहीं है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्डस् ब्यूरो के अनुसार, 2018 से 2018 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों में  7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस हिंसा के शिकार होने के डर से ही बहुत सी महिलाएं श्रम क्षेत्र में आ ही नहीं पातीं। इस डर के कारण बहुत सी महिलाएं अपने घरों से दूर ऑफिस ज्वाइन नहीं करतीं। रात की शिफ्ट में नौकरी ना कर पाना भी इसी हिंसा का परिणाम है। इसलिए महिला सुरक्षा के लिए बजट आवंटन से लंबे समय के परिवर्तन लाए जा सकते हैं। इस तरह से महिलाएं श्रम क्षेत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकती हैं। 

वित्त मंत्री को आगामी बजट में महिलाओं से जुड़े इन मुद्दों के लिए उचित धनराशि का प्रावधान करना होगा ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो सके। 

 

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