बिहार: ASI द्वारा संरक्षित सम्राट अशोक के लघु शिलालेख को बना दिया मजार! जानें मामला
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हाइलाइट्स
सारनाथ की ओर जाने के क्रम में सम्राट अशोक चंदन पहाड़ी के पास रुके थे.
धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था.
सम्राट अशोक के इस लघु शिलालेख को अतिक्रमित कर मजार दिया गया है.
सासाराम. रोहतास के चंदन पहाड़ी पर आज से 23 सौ साल पूर्व सम्राट अशोक ने लघु शिलालेख स्थापित किया था. लेकिन आज वह लघु शिलालेख अतिक्रमित हो गया. बताया जाता है कि उसे मजार का रूप दे दिया गया है. कुछ लोगों ने उसमें गेट लगाकर ताला बंद कर दिया है. साथ ही इस शिलालेख को हरे रंग की चादर से ढक दिया है. जिससे लघु शिलालेख के अस्तित्व पर खतरा हो गया है.
बता दें कि सासाराम नगर के निकट स्थित चंदन पहाड़ी पर स्थित है. जानकार बताते हैं कि कलिंग युद्ध के बाद जब सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और देश और दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार करने लगे. उसी दौरान सारनाथ की ओर जाने के क्रम में सम्राट अशोक इसी चंदन पहाड़ी के पास रुके थे. इतिहासकार श्यामसुंदर तिवारी बताते हैं कि अपने धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था. इस तरह के लघु शिलालेख सासाराम के अलावा उत्तर प्रदेश एवं कैमूर जिला में भी है. जिसमें बौद्ध धर्म के प्रचार के संबंध में शिलालेख अंकित किया गया है.
चूंकि इसे संरक्षित करने की जिम्मेवारी जिले के वरीय अधिकारियों के पास है ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय पुरातत्व को संरक्षित करने वाली आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा वर्ष 1917 में ही संरक्षित इस शिलालेख के अस्तित्व को क्यों नहीं बचाया जा रहा है? बता दें कि वर्ष 2021 में अफगानिस्तान के बामियान में भी गौतम बुद्ध की दो विशाल प्रतिमा को खंडित करने की कोशिश की गई थी. जिसके बाद विश्व स्तर पर हंगामा हो गया था.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
रोहतास तथा कैमूर के इलाके के पहाड़ियों पर लगातार शोध कार्य करने वाले इतिहासकार डॉ. श्यामसुंदर तिवारी कहते हैं कि लगभग 2300 साल पहले सम्राट अशोक ने कलिंग की लड़ाई के बाद इस शिलालेख को स्थापित किया था. जिसमें सम्राट अशोक ने अपने यात्रा से संबंधित जानकारी लिखी हैं. धर्म प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह लेख लिखा गया था.
उन्होंने बताया कि ऐसी सूचना मिल रही है कि शिलालेख अतिक्रमित कर दिया गया है. चूंकि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने वर्ष 1917 में ही अंग्रेजों के द्वारा इसे संरक्षित किया गया था. लेकिन फिर कालांतर में इसकी देखरेख नहीं हुई. बता दें कि यह शिलालेख ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व पर शोध करने वाले छात्रों के लिए नजीर है.
पीर मजार कमेटी का पक्ष
इस संबंध में चंद-तन पीर मजार कमेटी के चेयरमैन जी.एम. अंसारी ने बताया कि जब-जब चुनाव का समय आता है. इस मुद्दे को कुछ लोग उठा देते हैं. इसके अलावे जब-जब कोई नया जिलाधिकारी जिले में आता है तो कुछ लोग इस मुद्दे को लेकर सामने आ जाते हैं. जबकि पहले भी कई जिलाधिकारी के समक्ष वे खुद इस मुद्दे की जानकारी दे चुके हैं.
जीएम अंसारी ने फोन पर बताया कि वह अभी हज यात्रा पर जा रहे हैं. ऐसे में वहां कोई अतिक्रमण नहीं किया गया है. उनका दावा है कि वर्ष 1932 का कागजात उनके पास है जिसके आधार पर वहां इबादत की जा रही हैं. उनका कहना है कि शिलालेख को लेकर कहीं कोई बात नहीं है.
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Tags: Archaeological Survey of India, Bihar News, Sasaram news
FIRST PUBLISHED : September 27, 2022, 16:59 IST
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